"तुम्हें नमन / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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चल पड़े जिधर दो डग, मग में | चल पड़े जिधर दो डग, मग में | ||
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चल पड़े कोटि पग उसी ओर ; | चल पड़े कोटि पग उसी ओर ; | ||
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गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि | गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि | ||
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गड़ गए कोटि दृग उसी ओर, | गड़ गए कोटि दृग उसी ओर, | ||
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जिसके शिर पर निज हाथ धरा | जिसके शिर पर निज हाथ धरा | ||
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उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ | उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ | ||
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जिस पर निज मस्तक झुका दिया | जिस पर निज मस्तक झुका दिया | ||
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झुक गए उसी पर कोटि माथ ; | झुक गए उसी पर कोटि माथ ; | ||
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हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु | हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु | ||
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हे कोटि रूप, हे कोटि नाम ! | हे कोटि रूप, हे कोटि नाम ! | ||
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तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि | तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि | ||
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हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम ! | हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम ! | ||
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युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख | युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख | ||
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युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख, | युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख, | ||
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तुम अचल मेखला बन भू की | तुम अचल मेखला बन भू की | ||
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खीचते काल पर अमिट रेख ; | खीचते काल पर अमिट रेख ; | ||
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तुम बोल उठे युग बोल उठा | तुम बोल उठे युग बोल उठा | ||
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तुम मौन रहे, जग मौन बना, | तुम मौन रहे, जग मौन बना, | ||
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कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर | कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर | ||
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युगकर्म जगा, युगधर्म तना ; | युगकर्म जगा, युगधर्म तना ; | ||
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युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक | युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक | ||
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युग संचालक, हे युगाधार ! | युग संचालक, हे युगाधार ! | ||
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युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें | युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें | ||
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युग युग तक युग का नमस्कार ! | युग युग तक युग का नमस्कार ! | ||
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दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से | दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से | ||
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तुम काल-चक्र की चाल रोक, | तुम काल-चक्र की चाल रोक, | ||
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नित महाकाल की छाती पर | नित महाकाल की छाती पर | ||
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लिखते करुणा के पुण्य श्लोक ! | लिखते करुणा के पुण्य श्लोक ! | ||
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हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा, | हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा, | ||
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पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ? | पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ? | ||
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इस राजतंत्र के खण्डहर में | इस राजतंत्र के खण्डहर में | ||
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उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र ! | उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र ! | ||
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09:53, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;
हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;
तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !
दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !
हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !