"नौकर और बच्चे:एक / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर
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08:03, 3 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
इस जगह
जिनके माँ-बाप
किसी हादसे का शिकार होते हैं
वे बच्चे नहीं होते
नौकर होते हैं
नौकर बच्चों के सोने के बाद सोता है
बच्चों के जागने से पहले जागता है
बच्चे कड़ाके की सर्दी में
माँ-बाप की गोद में
गर्माते हैं रज़ाई में
नौकर सुन्न हाथों से
माँजता है बर्तन
जलाता है हमाम
नहाते हैं बच्चे
फटी चप्पलें पहने
नौकर
पालिश करता है जूते
बच्चे पहनते हैं
चीथड़े पहने
नौकर धोता है कपड़े
बच्चे सजते हैं
बच्चे डाँटते हैं
खाता है नौकर
बच्चे हमेशा करते हैं बैटिंग
बौलिंग करता है नौकर
परंतु आउट
हमेशा नौकर ही होता है
नौकर स्कूल नहीं जाता
बच्चों को तैयार करता है
ठीक वक़्त पर स्कूल पहुँचाता है
नौकर के हिस्से का प्रकाश
स्थानांतरित होता है बच्चों को
बच्चों का अंधकार नौकर को
नौकर का बचपन खाते हुए
बच्चे जवान होते हैं
दरअसल इस जगह
नौकर का दुनिया में
कोई नहीं होता
बच्चों की होती है दुनिया.