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|रचनाकार=अनिल जनविजय
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'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स'''
 
'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स'''
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हर सुबह
 
हर सुबह

15:55, 6 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


3.


हर सुबह

दाल का अदहन चढ़ाकर

माँ चावल बीनने बैठ जाती


भूसी, किनकी, कंकड़ एक-एक कर ज़मीन पर गिरते


चमकती आँखों से भूख और गौरैया

आंगन में फुदकने लगते

दाल चुरती कि

हरदियाइन महकने लगता पूरा बरामदा


गौरैया और चकती आँखों से भूख

घर के कोने-कोने में

महक के साथ समा जाते


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है