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'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' | '''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स''' | ||
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15:55, 6 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स
3.
हर सुबह
दाल का अदहन चढ़ाकर
माँ चावल बीनने बैठ जाती
भूसी, किनकी, कंकड़ एक-एक कर ज़मीन पर गिरते
चमकती आँखों से भूख और गौरैया
आंगन में फुदकने लगते
दाल चुरती कि
हरदियाइन महकने लगता पूरा बरामदा
गौरैया और चकती आँखों से भूख
घर के कोने-कोने में
महक के साथ समा जाते
(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है