भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहे / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीर खुसरो}} खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। ...) |
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=अमीर खुसरो}} | + | |रचनाकार=अमीर खुसरो |
− | + | }} | |
− | खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। | + | [[Category:दोहे]] |
− | + | <poem> | |
− | तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।। | + | खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। |
− | + | तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
+ | खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार। | ||
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। | जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। | ||
− | + | ||
− | + | खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला। | |
− | + | ||
− | खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला। | + | |
− | + | ||
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।। | आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।। | ||
− | + | ||
− | + | गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस। | |
− | + | ||
− | गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस। | + | |
− | + | ||
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस।। | चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस।। | ||
+ | |||
+ | खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय। | ||
+ | कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहिं होत सहाय।। | ||
+ | |||
+ | </poem> |
12:46, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।।
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।
खीर पकायी जतन से, चरखा दिया जला।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा।।
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस।।
खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय।
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहिं होत सहाय।।