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"हादसा / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

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बरसों की आरी हंस रही थी
 
बरसों की आरी हंस रही थी

16:16, 23 मई 2009 के समय का अवतरण

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»  हादसा

बरसों की आरी हंस रही थी
घटनाओं के दांत नुकीले थे
अकस्मात एक पाया टूट गया
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया

आंखों में ककड़ छितरा गये
और नजर जख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है