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"बिलकीस / निज़ार क़ब्बानी / श्रीविलास सिंह" के अवतरणों में अंतर

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बिलकीस ओह राजकुमारी
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बिलकीस ! ओह राजकुमारी !
 
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
 
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
क्या लिखूंगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में?  
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क्या लिखूँगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में ?  
निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफे
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निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफ़े
 
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
 
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर-चूर हो गयी एक देह को,  
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एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर-चूर हो गई एक देह को,  
 
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
 
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
क्या यह तुम्हारी कब्र थी
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क्या यह तुम्हारी क़ब्र थी
अथवा कब्र अरब राष्ट्रवाद की?  
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अथवा क़ब्र अरब राष्ट्रवाद की ?  
 
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,  
 
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,  
 
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
 
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाणयुग में
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यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाण-युग में
क्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस?  
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क्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस ?  
क्या कहती है कविता कायरता के युग में?  
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क्या कहती है कविता कायरता के युग में ?  
कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गयी है इसकी जुबान
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कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गई है इसकी ज़ुबान
 
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध
 
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध
 
बिलकीस
 
बिलकीस
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संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,  
 
संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,  
 
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
 
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना!  
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कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना !  
ईश्वर की शरण में रहो, सौंदर्यशालिनी,  
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ईश्वर की शरण में रहो, सौन्दर्यशालिनी,  
असंभव है कविता, अब तुम्हारे बाद।
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असम्भव है कविता, अब तुम्हारे बाद ।
 
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19:38, 14 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

बिलकीस ! ओह राजकुमारी !
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
क्या लिखूँगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में ?
निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफ़े
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर-चूर हो गई एक देह को,
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
क्या यह तुम्हारी क़ब्र थी
अथवा क़ब्र अरब राष्ट्रवाद की ?
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाण-युग में
क्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस ?
क्या कहती है कविता कायरता के युग में ?
कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गई है इसकी ज़ुबान
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध
बिलकीस
मैं तुमसे क्षमा की भीख माँगता हूँ।
संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना !
ईश्वर की शरण में रहो, सौन्दर्यशालिनी,
असम्भव है कविता, अब तुम्हारे बाद ।