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"लय / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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काश एक खिड़की—
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रख दूंगा, मरोड़ कर
रसोईघर के अलावा—एक खिड़की
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(गीले कपड़े नहीं)गर्दन
दीवानख़ाने में
+
अवश्य
और एक सोने के कमरे में भी
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पर आज नहीं,
खुलती
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कल ।
 +
मुट्ठी से तेज़ी से झरती है रेत ।
 +
 +
बूंद-बूंद अन्तिम बूंद तक
 +
रक्त टप-टप टपकेगा
  
हमारा—उनका साथ
+
चीखती क्यों है री, चिड़िया
दस्तरख़ान पर ही नहीं,
+
हँस ।  
गुज़रे हुए जमाने के पुरलुत्फ़
+
मौत से पहले एक बार और गा
जिक्रों में भी होता ।
+
और
+
बड़ी रात गये
+
बिस्तर पर लेटे
+
हम
+
देखते ही रहते
+
बड़े-बड़े चाँद को
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मीठी रोशनी से सूनसान को नहलाते ।
+
ये झाड़-झंखार, झरबेरी;
+
नागफनी के पीले, नन्हें फूल ;
+
दरकी, मैली, काली, टूटी-फूटी क़ब्रें;
+
पगडण्डियाँ । ये कितनी उजली है
+
इन्हें किसने बनाया हैं
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और कहाँ जा रही हैं ?
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लो
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सदियों का गवाह
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तमाम लम्बे अतीत का प्रतीक
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एक दीप
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उस कोने के धुँधलके में
+
बुझते-बुझते
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टिमटिमाने लगा ।
+
शांति । कितनी शांति ।
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सौंदर्य ही सौंदर्य ।
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लेकिन यह घर
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उफ़ । यह कितना अंधेरा,
+
कैसा बंद-बंद, उजाड़, मनहूस है
+
आओ, चलें
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यहाँ से चलें
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कौन ? उधर कौन है ?
+
  
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ढूंढता था कबसे ।
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अब जाकर मिली है-
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वह तीखी तलवार
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लम्बे नेज़े-सी, नुकीली, धारदार, लपलप करती ।
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नीलाकाश में टूटते  हुए तारे
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की रेख ।
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कर दूंगा उसे छाती से पार, आरपार । अवश्य ।
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लेकिन आज नहीं, कल ।
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झूलते हैं बच्चे,
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सहमते-से
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पर खुश ।
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पेंगें भरती हैं लड़कियाँ
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गूँज रहा बारहमासा-
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‘आओ रे सजन । घर आओ रे, हारी ।‘
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बेशक वे आयेंगे ।
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टिक, टिक, पेंडुलम घड़ी का,
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टिक, टिक ।
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देह भी तो कल झूलेगी,
 +
छत की कड़ी में अटकी रस्सी से ।
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धीरे-धीरे ।
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लयबद्ध ।
 
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21:10, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

रख दूंगा, मरोड़ कर
(गीले कपड़े नहीं)गर्दन
अवश्य ।
पर आज नहीं,
कल ।
मुट्ठी से तेज़ी से झरती है रेत ।
 
बूंद-बूंद अन्तिम बूंद तक
रक्त टप-टप टपकेगा ।

चीखती क्यों है री, चिड़िया ।
हँस ।
मौत से पहले एक बार और गा ।

ढूंढता था कबसे ।
अब जाकर मिली है-
वह तीखी तलवार
लम्बे नेज़े-सी, नुकीली, धारदार, लपलप करती ।
नीलाकाश में टूटते हुए तारे
की रेख ।

कर दूंगा उसे छाती से पार, आरपार । अवश्य ।
लेकिन आज नहीं, कल ।

झूलते हैं बच्चे,
सहमते-से
पर खुश ।
पेंगें भरती हैं लड़कियाँ
गूँज रहा बारहमासा-
‘आओ रे सजन । घर आओ रे, हारी ।‘
बेशक वे आयेंगे ।

टिक, टिक, पेंडुलम घड़ी का,
टिक, टिक ।

देह भी तो कल झूलेगी,
छत की कड़ी में अटकी रस्सी से ।
धीरे-धीरे ।
लयबद्ध ।