भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तरल मीन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | तरल मीन | + | 17 |
+ | '''तरल मीन''' | ||
उमड़ा पीर-सिन्धु | उमड़ा पीर-सिन्धु | ||
गीले कपोल । | गीले कपोल । | ||
+ | 18 | ||
+ | कितने हाथ ! | ||
+ | छलने को आतुर | ||
+ | छोड़ूँ न साथ। | ||
+ | 19 | ||
+ | केवल नारी? | ||
+ | नहीं, तुम हो आत्मा | ||
+ | मेरी आराध्या | ||
+ | 20 | ||
+ | दर्द ही सहे | ||
+ | तू मेरी वसुन्धरा | ||
+ | उफ़ न कहे। | ||
+ | 21 | ||
+ | मैं अभिशप्त | ||
+ | करूँ तुझे संतप्त | ||
+ | दण्डित करो। | ||
+ | 22 | ||
+ | दुख ही दिया | ||
+ | जो चाहूँ सुख देना | ||
+ | नियति क्रूर। | ||
+ | 23 | ||
+ | सिंधु से बिंदु | ||
+ | अलग हो भी कैसे | ||
+ | एकाकार है। | ||
+ | 24 | ||
+ | विलीन हुई | ||
+ | तरंग सागर में | ||
+ | खोजे न मिली | ||
</poem> | </poem> |
04:16, 21 मार्च 2021 के समय का अवतरण
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
17
तरल मीन
उमड़ा पीर-सिन्धु
गीले कपोल ।
18
कितने हाथ !
छलने को आतुर
छोड़ूँ न साथ।
19
केवल नारी?
नहीं, तुम हो आत्मा
मेरी आराध्या
20
दर्द ही सहे
तू मेरी वसुन्धरा
उफ़ न कहे।
21
मैं अभिशप्त
करूँ तुझे संतप्त
दण्डित करो।
22
दुख ही दिया
जो चाहूँ सुख देना
नियति क्रूर।
23
सिंधु से बिंदु
अलग हो भी कैसे
एकाकार है।
24
विलीन हुई
तरंग सागर में
खोजे न मिली