भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुनिया देखी है/ रामकिशोर दाहिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामकिशोर दाहिया }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ||
+ | थानेदार | ||
+ | कहूँ क्या मेडम | ||
+ | दुनिया देखी अन्दर से | ||
+ | चरमर चूँ थे | ||
+ | रिश्ते-नाते, लेकर दिल से | ||
+ | जोड़ा तुमने | ||
+ | हमने रोका-टोंका | ||
+ | जब भी, माना हमको | ||
+ | रोड़ा तुमने | ||
+ | आँखों में हम | ||
+ | नाचे-फुदके | ||
+ | रहना साँप-छुछुंदर से | ||
+ | |||
+ | महुवे कूँच | ||
+ | खड़ी कर पाए और आम | ||
+ | गदराना जानें | ||
+ | रस की गंध | ||
+ | लिए हम चहके उससे | ||
+ | कब बतियाना जानें ? | ||
+ | खट्टे-मीठे | ||
+ | अनुभव जीकर | ||
+ | हरदम रहे चुकंदर से | ||
+ | |||
+ | चार-मुकइया | ||
+ | तेंदू-खाए बेर-करौंदा | ||
+ | जस का तस है | ||
+ | हमें पुरानी | ||
+ | खोली अपनी, लगती | ||
+ | अब भी खस-खस है | ||
+ | नदिया-नाले | ||
+ | नहीं रिझाते | ||
+ | नाते गहर समन्दर से | ||
+ | |||
-रामकिशोर दाहिया | -रामकिशोर दाहिया | ||
</poem> | </poem> |
20:25, 21 मई 2021 के समय का अवतरण
थानेदार
कहूँ क्या मेडम
दुनिया देखी अन्दर से
चरमर चूँ थे
रिश्ते-नाते, लेकर दिल से
जोड़ा तुमने
हमने रोका-टोंका
जब भी, माना हमको
रोड़ा तुमने
आँखों में हम
नाचे-फुदके
रहना साँप-छुछुंदर से
महुवे कूँच
खड़ी कर पाए और आम
गदराना जानें
रस की गंध
लिए हम चहके उससे
कब बतियाना जानें ?
खट्टे-मीठे
अनुभव जीकर
हरदम रहे चुकंदर से
चार-मुकइया
तेंदू-खाए बेर-करौंदा
जस का तस है
हमें पुरानी
खोली अपनी, लगती
अब भी खस-खस है
नदिया-नाले
नहीं रिझाते
नाते गहर समन्दर से
-रामकिशोर दाहिया