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सूरज / अनिल जनविजय

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|संग्रह=कविता नहीं है यह / अनिल जनविजय
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सूरज
क़िताब पढ़ रहा है
एक लम्बा भूमिगत इतिहास
यातना के भयानक सब क्षणॊं क्षणों को
मन ही मन फिर गढ़ रहा है
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