"ग़ज़ल 22-24 / विज्ञान व्रत" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विज्ञान व्रत |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
+ | '''22''' | ||
+ | आपसे नज़दीकियाँ हैं | ||
+ | इसलिए तन्हाइयाँ हैं | ||
+ | |||
+ | आसमाँ पर ये सितारे | ||
+ | आपकी रानाइयाँ हैं | ||
+ | |||
+ | आशियाँ है ख़ास तो क्या | ||
+ | बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं | ||
+ | |||
+ | कल जहाँ ऊँचाइयाँ थीं | ||
+ | अब वहाँ गहराइयाँ हैं | ||
+ | |||
+ | आप हैं किस रौशनी में | ||
+ | गुमशुदा परछाइयाँ हैं | ||
+ | |||
+ | कर रही हैं शोर कितना | ||
+ | ये अजब ख़ामोशियाँ हैं | ||
+ | |||
+ | सुन रहे हैं लोग जिनको | ||
+ | आपकी सरगोशियाँ हैं | ||
+ | '''23''' | ||
+ | क्या तस्वीर बनायी थी | ||
+ | क्या तस्वीर दिखायी दी | ||
+ | |||
+ | क्या पूछो बीनाई की | ||
+ | तू ही तू दिखलायी दी | ||
+ | |||
+ | मैंने लाख दुहाई दी | ||
+ | उसने कब सुनवाई की | ||
+ | |||
+ | उसने आकर महफ़िल में | ||
+ | मंज़र को रानाई दी | ||
+ | |||
+ | नादाँ हूँ क्या समझूँगा | ||
+ | ये बातें दानाई की | ||
+ | '''24''' | ||
+ | खेत सुनहरे | ||
+ | मन कुछ कह रे | ||
+ | |||
+ | देख के तुझको | ||
+ | मौसम ठहरे | ||
+ | |||
+ | पहुँचे मन तक | ||
+ | तन के पहरे | ||
+ | |||
+ | कौन सुनेगा | ||
+ | चुप ही रह रे | ||
+ | |||
+ | अपने दुख को | ||
+ | ख़ुद ही सह रे | ||
</poem> | </poem> |
10:09, 31 मई 2022 के समय का अवतरण
22
आपसे नज़दीकियाँ हैं
इसलिए तन्हाइयाँ हैं
आसमाँ पर ये सितारे
आपकी रानाइयाँ हैं
आशियाँ है ख़ास तो क्या
बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं
कल जहाँ ऊँचाइयाँ थीं
अब वहाँ गहराइयाँ हैं
आप हैं किस रौशनी में
गुमशुदा परछाइयाँ हैं
कर रही हैं शोर कितना
ये अजब ख़ामोशियाँ हैं
सुन रहे हैं लोग जिनको
आपकी सरगोशियाँ हैं
23
क्या तस्वीर बनायी थी
क्या तस्वीर दिखायी दी
क्या पूछो बीनाई की
तू ही तू दिखलायी दी
मैंने लाख दुहाई दी
उसने कब सुनवाई की
उसने आकर महफ़िल में
मंज़र को रानाई दी
नादाँ हूँ क्या समझूँगा
ये बातें दानाई की
24
खेत सुनहरे
मन कुछ कह रे
देख के तुझको
मौसम ठहरे
पहुँचे मन तक
तन के पहरे
कौन सुनेगा
चुप ही रह रे
अपने दुख को
ख़ुद ही सह रे