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"योगफल / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित
 
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जीवित भी हम रह न सके।
 
जीवित भी हम रह न सके।
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'''जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955'''
 
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17:24, 8 अगस्त 2012 के समय का अवतरण

सुख मिला :
उसे हम कह न सके।
दुख हुआ:
उसे हम सह न सके।
संस्पर्श बृहत का उतरा सुरसरि-सा :
हम बह न सके ।
यों बीत गया सब : हम मरे नहीं, पर हाय ! कदाचित
जीवित भी हम रह न सके।

जेनेवा, 12 सितम्बर, 1955