"जो मारे जाते / शिरोमणि महतो" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
वे कभी नहीं चाहते | वे कभी नहीं चाहते | ||
सत्ता की सेज पर सोना | सत्ता की सेज पर सोना | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
क्योंकि वे नहीं जानते | क्योंकि वे नहीं जानते | ||
राजनीति का व्याकरण | राजनीति का व्याकरण | ||
भाषा के भेद | भाषा के भेद | ||
उच्चारणों का अनुतान । | उच्चारणों का अनुतान । | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
हाँ ! | हाँ ! |
10:18, 29 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
वे एक हाँक में
दौड़े आते सरपट गौओं की तरह
वे बलि-वेदी पर गर्दन डालकर
मुँह से उफ़्फ़ भी नहीं करते ।
बिलकुल भेड़ों की तरह
वे मन्दिर और मस्ज़िद में
गुरुद्वारे और गिरजाघर में
कोई फ़र्क नहीं समझते
उनके लिए वे देव-थान
आत्मा का स्नानघर होते !
वे उन देव थानों को
बारूद से उड़ाना तो दूर
उस ओर पत्थर भी नहीं फेंक सकते,
वे उन देव थानों को
अपने हाथों से तोड़ना तो दूर
उस ओर ठेप्पा भी नहीं दिखा सकते ।
वे याद नहीं रखते
वेदों की ऋचाएँ / कुरान की आयतें
वे केवल याद रखते हैं
अपने परिवार की कुछेक ज़रूरतें ।
वे दिन भर खटते-खपते है —
तन भर कपड़ा / सर पर छप्पर और पेट भर भात के लिए
वे कभी नहीं चाहते
सत्ता की सेज पर सोना
क्योंकि वे नहीं जानते
राजनीति का व्याकरण
भाषा के भेद
उच्चारणों का अनुतान ।
हाँ !
वे रोज़ी कमाते हैं
रोटी पकाते हैं
और चूल्हे में
रोटी सेंकते भी हैं
लेकिन वे नहीं जानते
आग से दूर रहकर
रोटी सेंकने की कला !