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+ | प्रेम का ध्यान कर जो सदा, नृत्य में पग उठा झूमती | ||
+ | नेत्र में रंग भर वो गहन , पुष्प की डाल को चूमती | ||
+ | हो रही याद कर जो विकल, शुष्क होते अधर काँपते | ||
+ | रूप लोभी तरसते यहाँ, प्रीति की रागिनी भाँपते। | ||
+ | कृष्ण का खेल रच ही गया, बढ़ रही है सलोनी छटा | ||
+ | रास की आस बढ़ने लगी, फिर घिरेगी सुहानी घटा | ||
+ | राधिका मंद गति से चली, श्याम की बांसुरी जब बजी | ||
+ | गोपिका सब सजल हो खड़ी, तीर यमुना किनारे सजी। | ||
+ | जाग कर रात भर नाचते, रास लीला दिखाते रहे | ||
+ | थे प्रभू प्रेम बश मुग्ध से, नैन से अश्रु सावन बहे | ||
+ | है परीक्षा कठिन प्रेम की, धुन लगाना सहज कब हुआ | ||
+ | जो लगाये लगन धैर्य से, मन उसी का कृपा ने छुआ। | ||
− | + | भक्ति का मार्ग करके सरल, प्रीति में तुम संभल कर चलो | |
− | + | रूप को याद कर श्याम के, दीप बन कर जगत में जलो।। | |
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14:14, 25 अक्टूबर 2022 के समय का अवतरण
प्रेम का ध्यान कर जो सदा, नृत्य में पग उठा झूमती
नेत्र में रंग भर वो गहन , पुष्प की डाल को चूमती
हो रही याद कर जो विकल, शुष्क होते अधर काँपते
रूप लोभी तरसते यहाँ, प्रीति की रागिनी भाँपते।
कृष्ण का खेल रच ही गया, बढ़ रही है सलोनी छटा
रास की आस बढ़ने लगी, फिर घिरेगी सुहानी घटा
राधिका मंद गति से चली, श्याम की बांसुरी जब बजी
गोपिका सब सजल हो खड़ी, तीर यमुना किनारे सजी।
जाग कर रात भर नाचते, रास लीला दिखाते रहे
थे प्रभू प्रेम बश मुग्ध से, नैन से अश्रु सावन बहे
है परीक्षा कठिन प्रेम की, धुन लगाना सहज कब हुआ
जो लगाये लगन धैर्य से, मन उसी का कृपा ने छुआ।
भक्ति का मार्ग करके सरल, प्रीति में तुम संभल कर चलो
रूप को याद कर श्याम के, दीप बन कर जगत में जलो।।
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