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"निष्कर्षविहीन आत्ममंथन / लिली मित्रा" के अवतरणों में अंतर

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एक झरोखा खोज ही लेती हैं
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विकारों का जमावड़ा
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स्व के लिए विस्फोटक,
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और विकारों का उद्गार
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समाज के लिए विकृतिकारक
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क्या किया जाए?
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स्व का सुधार या,
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समाज का सुधार?
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चलो एक ऐसे विकृत
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मनोभावों का एक
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अंतस् के उस खींसें
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आमंत्रण को अपनाएँ,
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बाह्य का आवरण अब
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मुस्काए, तनाव, खीझ
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कुछ हद तक शांति पाए,
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चलो अब समाज को
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सुधारने का अभियान चलाएँ।
  
 
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05:30, 19 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

दमघोटू कालकोठरी-सा
एक कोना मन का,
एक दरार- सा
झरोखा खींसें
निपोरता हुआ

दबी- कुचली कुंठाएँ
अपनी उखड़ी साँसों
का मातम मनाती हुई
विद्रोह जैसे अभी भी
बाकी है,इस बेदम शरीर में

एक मास्क लगा दे
कोई ऑक्सीजन का
तो थोड़ी देर और जी लें
जानती हैं कि इन कुंठाओं
कि नियति कुचलकर
मसल जाना ही है,
फिर भी सिर पटक रही हैं

एक झरोखा खोज ही लेती हैं
और खोजना प्रकृति है
विकारों का जमावड़ा
स्व के लिए विस्फोटक,
और विकारों का उद्गार
समाज के लिए विकृतिकारक

क्या किया जाए?
स्व का सुधार या,
समाज का सुधार?
चलो एक ऐसे विकृत
मनोभावों का एक
'डंपिंग ग्राउंड' बनाएँ
अंतस् के उस खींसें
निपोरते झरोखे के
आमंत्रण को अपनाएँ,

कुछ साँसें तो खींच लीं
बाह्य का आवरण अब
मुस्काए, तनाव, खीझ
कुछ हद तक शांति पाए,
चलो अब समाज को
सुधारने का अभियान चलाएँ।