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"अहं-मुक्ति / कैलाश वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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मैं तुझे रक्त की आख़िरी बूँद तक दूँगा
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उतर आ लकड़ी के चकरबाज़ घोड़े से
उस घुमड़न के बदले
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फेंक दे यह झुनझुना
जो तेरे अंतर में
+
मैं तुझे लोहे की गोली दूँगा !
उठती है
+
साँप हवा पीता है जैसे—सोच नहीं ।
 +
क्या बाँध रक्खा है गठरी में
 +
चूड़ी के टुकड़े
  
यदि मुझे लग सके
+
रेशमी लत्तड़
वह घुमड़न
+
राँगे के मुकुट
मेरे ही कारण है
+
कुछ चिथड़ा तस्वीरें ?
मेरे ही ख़ातिर है
+
यों ही रहेगी
+
  
मैं हर सुविधा
+
फेंक इन्हें
संबंधी
+
मैं तुझे दूसरा तमाशा दिखाऊँगा
और
+
कच्ची दालान पर
एकांत
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आले में छोटा
 +
संदूक़ रखा है।
  
सब छोड़ दूँगा
+
झाँक भला
उस आह के बदले
+
पहले सूराख से
जो तेरे
+
भीतर कुछ दिखता है ?
होंठों पर
+
उगती है
+
  
यदि मुझे लग सके
+
मार लोहा ज़ोर से
वह केवल मेरी ही
+
डर नहीं
दूरी का घोष है
+
यह छटपटाहट तेरी नहीं
यों ही उठेगा !
+
शीशा
 +
टूटा है !
 
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09:46, 18 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

उतर आ लकड़ी के चकरबाज़ घोड़े से
फेंक दे यह झुनझुना
मैं तुझे लोहे की गोली दूँगा !
साँप हवा पीता है जैसे—सोच नहीं ।
क्या बाँध रक्खा है गठरी में
चूड़ी के टुकड़े

रेशमी लत्तड़
राँगे के मुकुट
कुछ चिथड़ा तस्वीरें ?

फेंक इन्हें
मैं तुझे दूसरा तमाशा दिखाऊँगा
कच्ची दालान पर
आले में छोटा
संदूक़ रखा है।

झाँक भला
पहले सूराख से
भीतर कुछ दिखता है ?

मार लोहा ज़ोर से
डर नहीं
यह छटपटाहट तेरी नहीं
शीशा
टूटा है !