('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | बादलों को चीरकर | ||
+ | सलज्ज कुमुदिनी-सी | ||
+ | लगी | ||
+ | आँख चाँद की सजल । | ||
+ | डुबोकर पोर-पोर | ||
+ | दिगन्त का हर छोर | ||
+ | हुआ | ||
+ | हृदय की तरह तरल । | ||
+ | अधर-सुगन्ध पीकर | ||
+ | प्रीति की रीति बने | ||
+ | छलक | ||
+ | मधुर चितवन चंचल । | ||
+ | (12-6-1983) | ||
</poem> | </poem> |
08:10, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण
बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।
डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।
अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
(12-6-1983)