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बादलों को चीरकर
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सलज्ज कुमुदिनी-सी
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लगी
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आँख चाँद की सजल ।
  
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डुबोकर पोर-पोर
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दिगन्त का हर छोर
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हुआ
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हृदय की तरह तरल ।
  
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अधर-सुगन्ध पीकर
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प्रीति की रीति बने
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छलक
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मधुर चितवन चंचल ।
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(12-6-1983)
 
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08:10, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।

डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।

अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
(12-6-1983)