Changes

तुम आए भी न थे / रूपम मिश्र

66 bytes added, 14:56, 4 जुलाई 2023
दुख की ऐसी नींद कि जैसे जान ही न हो देह में
तभी एक अकतीत - सा (अजीब-सा, कुछ-कुछ कसैला-सा) सवाल चित में उठा
तुम आए ही कब थे
जो मैं तुम्हारे जाने का शोक मना रही हूँ
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,340
edits