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"एक आवाज़ सुनी मैंने / आन्ना अख़्मातवा" के अवतरणों में अंतर

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मैंने एक आवाज़ सुनी, मुझे ढाढ़स बँधा रही थी,
 
मैंने एक आवाज़ सुनी, मुझे ढाढ़स बँधा रही थी,
और सहज स्वर में अपने पास बुला रही थी वो,
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और सहज स्वर में अपने पास बुला रही थी,
 
आजा-आजा छोड़ वह धरती, बहरी और अपावन,
 
आजा-आजा छोड़ वह धरती, बहरी और अपावन,
 
छोड़ रूस को हमेशा के लिए, तेरे लिए भयावन ।
 
छोड़ रूस को हमेशा के लिए, तेरे लिए भयावन ।
  
रक्त लगा हाथों पर तेरे, सुर्ख़ ख़ून वो मैं धो दूँगी,
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रक्त लगा हाथों पर तेरे, सुर्ख़ ख़ून मैं धो दूँगी,
 
स्याह शरम दिल के भीतर जो, उसे भी भिगो दूँगी,
 
स्याह शरम दिल के भीतर जो, उसे भी भिगो दूँगी,
हार का दर्द और नाराज़गी तेरी, जो मन में टीस रही है,
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हार का दर्द और नाराज़गी तेरी, जो मन को टीस रही है,
नया नाम देकर वह सब, कोने में एक लुको दूँगी ।
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नया नाम देकर वह सब, एक कोने में लुको दूँगी ।
  
पर शान्त मन से मैंने बड़ी उदासीनता के साथ,
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पर शान्त मन से मैंने औ’ बड़ी उदासीनता के साथ,
 
दोनों कान ढक लिए, रखकर उनपर अपने हाथ,  
 
दोनों कान ढक लिए, रखकर उनपर अपने हाथ,  
 
कि बात न पहुँचे, आवाज़ न पहुँचे, मुझ तक नामाकूल,
 
कि बात न पहुँचे, आवाज़ न पहुँचे, मुझ तक नामाकूल,

10:32, 12 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

मैंने एक आवाज़ सुनी, मुझे ढाढ़स बँधा रही थी,
और सहज स्वर में अपने पास बुला रही थी,
आजा-आजा छोड़ वह धरती, बहरी और अपावन,
छोड़ रूस को हमेशा के लिए, तेरे लिए भयावन ।

रक्त लगा हाथों पर तेरे, सुर्ख़ ख़ून मैं धो दूँगी,
स्याह शरम दिल के भीतर जो, उसे भी भिगो दूँगी,
हार का दर्द और नाराज़गी तेरी, जो मन को टीस रही है,
नया नाम देकर वह सब, एक कोने में लुको दूँगी ।

पर शान्त मन से मैंने औ’ बड़ी उदासीनता के साथ,
दोनों कान ढक लिए, रखकर उनपर अपने हाथ,
कि बात न पहुँचे, आवाज़ न पहुँचे, मुझ तक नामाकूल,
शोकाकुल था, मलिन नहीं था, मन का मेरे दुकूल ।

1917

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए 
               Анна Ахматова
               Мне голос был

Мне голос был. Он звал утешно,
Он говорил: «Иди сюда,
Оставь свой край глухой и грешный,
Оставь Россию навсегда.

Я кровь от рук твоих отмою,
Из сердца выну чёрный стыд,
Я новым именем покрою
Боль поражений и обид».

Но равнодушно и спокойно
Руками я замкнула слух,
Чтоб этой речью недостойной
Не осквернялся скорбный дух.

1917 г.