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"बादलो / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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ये हमारी तुम्‍हारी कहां की मुलाकात है,बादलो
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ये हमारी तुम्‍हारी कहाँ की मुलाक़ात है, बादलो !
 
कि तुम
 
कि तुम
दिल के करीब लाके,बिल्‍कुल ही
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दिल के क़रीब लाके,बिल्‍कुल ही
 
दिल से मिला के ही जैसे
 
दिल से मिला के ही जैसे
अपने फाहा-से गाल
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अपने फ़ाहा-से गाल
 
सेंकते जाते हो...।
 
सेंकते जाते हो...।
आज कोई जख्‍म
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आज कोई ज़ख़्म‍
इतना नाजुक नहीं
+
इतना नाज़ुक नहीं
जितना यह वक्‍त है
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जितना यह वक़्त है
जिसमें हम तुम
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जिसमें हम-तुम
 
सब रिस रहे हैं
 
सब रिस रहे हैं
 
चुप-चुप।
 
चुप-चुप।
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नश्‍तर-सी
 
नश्‍तर-सी
 
वह चमक
 
वह चमक
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03:53, 22 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

ये हमारी तुम्‍हारी कहाँ की मुलाक़ात है, बादलो !
कि तुम
दिल के क़रीब लाके,बिल्‍कुल ही
दिल से मिला के ही जैसे
अपने फ़ाहा-से गाल
सेंकते जाते हो...।
आज कोई ज़ख़्म‍
इतना नाज़ुक नहीं
जितना यह वक़्त है
जिसमें हम-तुम
सब रिस रहे हैं
चुप-चुप।
धूप अब
तुम पर
छतों पर
और मेरे सीने पर...
डूबती जाती है
हल्‍की-हल्‍की
नश्‍तर-सी
वह चमक