"ऐतिहासिक गीत / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | भ्यासी राजमारग कौं | ||
+ | हौं खेरे के गलउअनि पै लिखि सकत हौं | ||
+ | अनंत जीबनु, मुदिताई अरु सपुने | ||
+ | खेरे की मुलकनि कौं | ||
+ | हौं ऐतिहासिक गीत मैं फेरि दैंहौं | ||
+ | स्वर लहरीं गुंजिहैं | ||
+ | मंदिर की घंटीं | ||
+ | मधु मेलौ कल घोरिहैं | ||
+ | खेतनि में लहलहावैंगे | ||
+ | धान, लहा, कोदू, कौणी | ||
+ | पंचाइति के चौंतरा ऊपर हुक्का गुड़गुड़ावैंगे | ||
+ | पौहिनि के कुल की गरे की घंटीं खनकैंगी | ||
+ | थड़िया, चौंफलें और मंडाण | ||
+ | घोरिहैं वातावरन में प्रान | ||
+ | खिलखिलावतिं ललीं मतबारी | ||
+ | बिचरिहैं खेरे मँझारी | ||
+ | सारिनि के पल्ले लहरात भऐं। | ||
+ | अजान खेलिहैं पिट्ठू- राज- पाट- गारे | ||
+ | जानैं का का अवर ऊ | ||
+ | पंचायती पाठसाला में | ||
+ | पहाड़े रटिबे के स्वर | ||
+ | गुंजिहैं गगनभेदी नारे | ||
+ | स्वतंत्रता दिवस पै | ||
+ | भारत माता की जै | ||
+ | गणतंत्र दिवस ह्वैहै | ||
+ | न्यारे लडुअनि के डिब्बनि तैं मीठौ | ||
+ | लीन्हैं रंग बिरंगे सपन | ||
+ | राजमारग बढ़ौ खेरे तन | ||
+ | जे का पै | ||
+ | बाके पहुँचिबे तैं अगारी | ||
+ | खेरौ अंतिम साँस गिनि रह्यौ हुतो | ||
+ | बाकी बुढ़ाई हड्डीं हुतीं मरन वारी | ||
+ | खटिया पै खाँसत भए खेरौ पूछत अहै | ||
+ | अजौं अगमने, जबैं मोरौ जोबन लै चुकौ विदाई | ||
+ | अजौं जनि बचिहौं, केती ऊ करौ दवाई | ||
+ | पै बहोरि उ | ||
+ | राजमारग नैं नैननि की चमक नाहिं हिराई | ||
+ | बरनौ, साँच करिहौं तिहारे सपुने | ||
+ | काहे सौं कि मोहे बतायौ गयौ अहै अरु साँच अहै | ||
+ | ‘भारत माता खेरे की बसैया!’ | ||
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21:20, 23 अक्टूबर 2024 के समय का अवतरण
राजमार्ग को लगा
मैं गाँव के कपोलों पर लिख सकता हूँ
अनंत जीवन, प्रसन्नता और सपने
गाँव की मुस्कान को
मैं ऐतिहासिक गीत में परिवर्तित कर दूँगा
स्वर लहरियाँ गूँजेगी
मंदिर की घंटियाँ
घोलेंगी मधुमिश्रित शांति
खेतों में लहलहाएँगी
धान, सरसों, कोदू, कौणी
पंचायती चौंतरे पर हुक्के गुड़गुड़ाएँगे
पशुकुल की गलघंटियाँ खनकेंगी
थड़िया, चौंफलें और मंडाण
घोलेंगे वातावरण में जीवंतता
मदमाती बालाएँ खिलखिलाती
गाँव में विचरण करेंगी
साड़ियों के पल्लू लहराते हुए।
छुटके खेलेंगे पिट्ठू - राज - पाट - गारे
जाने क्या - क्या और भी
पंचायती विद्यालय में
पहाड़े रटने के स्वर
गूँजेंगे गगनभेदी नारे
स्वतंत्रता दिवस पर-
“भारत माता की जय”
गणतंत्र दिवस होगा
विशेष लड्डुओं के डिब्बों से मीठा
रंग- बिरंगे सपने लिये
राजमार्ग बढ़ा गाँव की ओर
लेकिन यह क्या
उसके पहुँचने से पहले ही
गाँव अंतिम साँसें गिन रहा था
उसकी बूढ़ी हड्डियाँ मरणासन्न थी
खटिया पर खाँसते हुए गाँव पूछता है
अब आए हो, जब मेरा यौवन हो चुका विदा
अब नहीं बचूँगा, कितना भी औषध करो
किंतु फिर भी
राजमार्ग ने आँखों की चमक नहीं खोई
बोला, “सच करूँगा तुम्हारे सपने
क्योंकि मुझे बताया गया है और सच है
'भारतमाता ग्रामवासिनी!'
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ब्रज अनुवाद-
ऐतिहासिक गीत/ रश्मि विभा त्रिपाठी
भ्यासी राजमारग कौं
हौं खेरे के गलउअनि पै लिखि सकत हौं
अनंत जीबनु, मुदिताई अरु सपुने
खेरे की मुलकनि कौं
हौं ऐतिहासिक गीत मैं फेरि दैंहौं
स्वर लहरीं गुंजिहैं
मंदिर की घंटीं
मधु मेलौ कल घोरिहैं
खेतनि में लहलहावैंगे
धान, लहा, कोदू, कौणी
पंचाइति के चौंतरा ऊपर हुक्का गुड़गुड़ावैंगे
पौहिनि के कुल की गरे की घंटीं खनकैंगी
थड़िया, चौंफलें और मंडाण
घोरिहैं वातावरन में प्रान
खिलखिलावतिं ललीं मतबारी
बिचरिहैं खेरे मँझारी
सारिनि के पल्ले लहरात भऐं।
अजान खेलिहैं पिट्ठू- राज- पाट- गारे
जानैं का का अवर ऊ
पंचायती पाठसाला में
पहाड़े रटिबे के स्वर
गुंजिहैं गगनभेदी नारे
स्वतंत्रता दिवस पै
भारत माता की जै
गणतंत्र दिवस ह्वैहै
न्यारे लडुअनि के डिब्बनि तैं मीठौ
लीन्हैं रंग बिरंगे सपन
राजमारग बढ़ौ खेरे तन
जे का पै
बाके पहुँचिबे तैं अगारी
खेरौ अंतिम साँस गिनि रह्यौ हुतो
बाकी बुढ़ाई हड्डीं हुतीं मरन वारी
खटिया पै खाँसत भए खेरौ पूछत अहै
अजौं अगमने, जबैं मोरौ जोबन लै चुकौ विदाई
अजौं जनि बचिहौं, केती ऊ करौ दवाई
पै बहोरि उ
राजमारग नैं नैननि की चमक नाहिं हिराई
बरनौ, साँच करिहौं तिहारे सपुने
काहे सौं कि मोहे बतायौ गयौ अहै अरु साँच अहै
‘भारत माता खेरे की बसैया!’
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