भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"किरनें थकीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category: ताँका]]
 
[[Category: ताँका]]
 
<poem>
 
<poem>
1
+
64
 
हवा क्या चली
 
हवा क्या चली
 
बिखर गए सारे
 
बिखर गए सारे
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
मुड़कर देखा जो
 
मुड़कर देखा जो
 
मीत कोई ना साथ।
 
मीत कोई ना साथ।
2
+
65
 
किरनें थकीं
 
किरनें थकीं
 
घुटने भी अकड़े
 
घुटने भी अकड़े
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
काँपते हाथ-पाँव
 
काँपते हाथ-पाँव
 
काले कोसों है गाँव।
 
काले कोसों है गाँव।
3
+
66
 
रुको तो सही
 
रुको तो सही
 
कोई बोला प्यार से-
 
कोई बोला प्यार से-

23:09, 11 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

64
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
गुलाबी पात
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
65
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
पीठ जकड़ी
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
66
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
‘मैं भी हूँ साथ’
थामकरके हाथ
सफ़र करें पूरा।
-0-
30/10/24