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साँझ के धुधलके की ओट लेकर
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चुपचाप छोड़ भागे थे तुम शरीर अपना
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जैसे छोड़ जाता है साँप केंचुली
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बन जाता है पुनः चुस्त फुर्तीला
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क्या तुम भी छोड़ गए थे उस साँझ
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आँगन वाली खाट पर सदा के लिए अपनी थकान
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क्या तुम्हें पता है बाबा
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तुम्हारे जाने ने मुझे बना दिया था मुखिया घर का
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पगड़ी पहनाकर रख दिए थे
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घर के सारे बोझ मेरे सिर पर
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उसी दिन से मैंने भी शुरू किया था देखना
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बड़के का सिर
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जिस पर बँधनी थी पगड़ी
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मेरे थक जाने के बाद
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सोचता हूँ बदला क्या?
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सिर बदला, पगड़ी बदली;
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पर यथावत्‌ रहा मुझमें तुम्हारा होना
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जैसे तुममें तुम्हारे पिता का
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और उनमें उनके पिता का होना
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जन्मना, बढ़ना-बुढ़ाना, थक जाना
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ओर आँगन वाली खाट पर
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फिर एक केंचुली का रह जाना।
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14:42, 21 जुलाई 2025 के समय का अवतरण

बाबा उस गुरु पूर्णिमा को
सूरज के छिप जाने और
चाँद के आने से पहले
साँझ के धुधलके की ओट लेकर
चुपचाप छोड़ भागे थे तुम शरीर अपना
जैसे छोड़ जाता है साँप केंचुली
बन जाता है पुनः चुस्त फुर्तीला
क्या तुम भी छोड़ गए थे उस साँझ
आँगन वाली खाट पर सदा के लिए अपनी थकान
क्या तुम्हें पता है बाबा
तुम्हारे जाने ने मुझे बना दिया था मुखिया घर का
पगड़ी पहनाकर रख दिए थे
घर के सारे बोझ मेरे सिर पर
उसी दिन से मैंने भी शुरू किया था देखना
बड़के का सिर
जिस पर बँधनी थी पगड़ी
मेरे थक जाने के बाद
सोचता हूँ बदला क्या?
सिर बदला, पगड़ी बदली;
 पर यथावत्‌ रहा मुझमें तुम्हारा होना
जैसे तुममें तुम्हारे पिता का
और उनमें उनके पिता का होना
जन्मना, बढ़ना-बुढ़ाना, थक जाना
ओर आँगन वाली खाट पर
फिर एक केंचुली का रह जाना।
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