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"माँ से बातें / आभा बोधिसत्त्व" के अवतरणों में अंतर
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माँ! | माँ! |
01:35, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
माँ!
चांद देखकर ख़ुश होते हैं बच्चे
पर मुझे यह चांद न सुहाया
क्यों नहीं हुई ख़ुशी इसे देखकर
कभी भी
न आंगन के ताल में
न नदियों के जल में
न नम आँखों में
कहीं भी इसे देखकर ख़ुशी नहीं हुई।
ऎसा क्यों हुआ, माँ !
तुम बता सकती हो मुझे
क्योंकि मैंने सुना है
माँएँ समझती हैं
अपने बच्चों के मन को ठीक से।
क्यों न हो, माँ!
मुझे आन लो हमेशा के लिए
अपने पास
और तुम मुझे सुलाकर इस चांद को
हटा दो मेरे मन से
मैं भूल जाऊँ कि चांद होता ही नहीं ।
क्या ऎसा हो सकता है, माँ!