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"हमारा देश / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है | झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है | ||
इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के | इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के | ||
उमगते सुर में | उमगते सुर में | ||
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इन्हीं के मर्म को अनजान | इन्हीं के मर्म को अनजान | ||
शहरों की ढँकी लोलुप | शहरों की ढँकी लोलुप | ||
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इन्हीं में लहरती अल्हड़ | इन्हीं में लहरती अल्हड़ | ||
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सभ्यता का भूत हँसता है। | सभ्यता का भूत हँसता है। | ||
+ | '''राँची-मुरी (बस में), 6 फरवरी, 1949''' | ||
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12:58, 6 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
इन्हीं तृण-फूस-छप्पर से
ढंके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है
इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस बरसता है।
इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता है।
इन्हीं में लहरती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत हँसता है।
राँची-मुरी (बस में), 6 फरवरी, 1949