अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} <Poem> सिर से कंधों तक ढँके हुए वे क...) |
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सिर से कंधों तक ढँके हुए | सिर से कंधों तक ढँके हुए | ||
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17:11, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
सिर से कंधों तक ढँके हुए
वे कहते रहे
कि पीठ नहीं दिखाएंगे--
और हम उन्हें सराहते रहे।
पर जब गिरने पर
उनके नकाब उल्टे तो
उनके चेहरे नहीं थे।