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"घर / गुरप्रीत" के अवतरणों में अंतर
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11:48, 4 जून 2009 के समय का अवतरण
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गुम हुई चीज़ को
तलाशने के लिए
खंगाल डालती थी
घर का हर अंधेरा-तंग कोना
मेरी माँ !
बीवी भी अब ऐसा ही करती है
और अपनी ससुराल में बहन भी !
चीज़ों के गुम होने
और इनके रोने के लिए
अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
तो घर का नाम भी
घर नहीं होता।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव