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भाई की चिट्ठी / एकांत श्रीवास्तव
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22:20, 20 दिसम्बर 2008
जिसमें छुपे काँटों को वह नहीं जानता
वह नहीं जानता कि दो शब्दों के बीच
भयंकर
सापों
साँपों
की फुँफकार है
और डोल रही है वहाँ यम की परछाईं
अनिल जनविजय
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