भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: '''लेखन वर्ष: २००३'''<br/><br/> आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ<br/> आदाब तुझे मेरे ज...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''लेखन वर्ष: २००३'''<br/><br/>
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
 +
}}
 +
[[Category: ग़ज़ल]]
  
आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ<br/>
+
'''रचनाकाल : 2003
आदाब तुझे मेरे जानो-तन लखनऊ<br/><br/>
+
  
है कभी आईना कभी शराब-सा तू<br/>
+
<Poem>
है मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन लखनऊ<br/><br/>
+
  
है तू ही मुस्लमाँ और तू ही है हिन्दू<br/>
+
आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ
निकहते रहे तेरे गुलशन लखनऊ<br/><br/>
+
आदाब तुझे मेरे जानो-तन लखनऊ
  
लहज़ा लुत्फ़ ज़ुबाँ और मेरी यह ख़ू<br/>
+
है कभी आइना कभी शराब-सा तू
हर चीज़ है जैसे मेरा चमन लखनऊ<br/><br/>
+
है मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन लखनऊ
  
है जन्नतो-इरम इसमें हर कू<br/>
+
है तू ही मुस्लमाँ, तू ही है हिन्दू
लहू में दौड़ता है जाने-मन लखनऊ<br/><br/>
+
निकहते<ref>महकते</ref> रहे तेरे गुलशन लखनऊ
 +
 
 +
लहज़ा, लुत्फ़, ज़ुबाँ और मेरी यह ख़ू<ref>आदत</ref>
 +
हर चीज़ है जैसे मेरा चमन लखनऊ
 +
 
 +
है जन्नतो-इरम<ref>वास्तविक और कृतिम स्वर्ग</ref> इसमें हर कू<ref>गली</ref>
 +
लहू में दौड़ता है जाने-मन लखनऊ
 +
 
 +
{{KKMeaning}}
 +
</Poem>

00:31, 16 मार्च 2011 के समय का अवतरण

रचनाकाल : 2003


आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ
आदाब तुझे मेरे जानो-तन लखनऊ

है कभी आइना कभी शराब-सा तू
है मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन लखनऊ

है तू ही मुस्लमाँ, तू ही है हिन्दू
निकहते<ref>महकते</ref> रहे तेरे गुलशन लखनऊ

लहज़ा, लुत्फ़, ज़ुबाँ और मेरी यह ख़ू<ref>आदत</ref>
हर चीज़ है जैसे मेरा चमन लखनऊ

है जन्नतो-इरम<ref>वास्तविक और कृतिम स्वर्ग</ref> इसमें हर कू<ref>गली</ref>
लहू में दौड़ता है जाने-मन लखनऊ

शब्दार्थ
<references/>