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"लहर इक ‘विनय’/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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− | नाचीज़ खु़द को खा़स समझ बैठा | + | नाचीज़ खु़द को खा़स समझ बैठा |
− | ‘वो’ अजनबी पेश रहा | + | ‘वो’ अजनबी पेश रहा |
− | जब दिल की बात ज़ुबाँ पर लाया | + | जब दिल की बात ज़ुबाँ पर लाया |
− | मरासिम टूट गया… | + | मरासिम टूट गया… |
− | जब भी निकला आगे | + | जब भी निकला आगे |
− | उसके हाथों से एक हाथ छूट गया | + | उसके हाथों से एक हाथ छूट गया |
− | ग़म क्या थे? | + | ग़म क्या थे? |
− | अफ़सोस किस बात का करता वह | + | अफ़सोस किस बात का करता वह |
− | जब जी में आया उसके | + | जब जी में आया उसके |
− | खु़द का दोस्त बनके खु़द से रूठ गया | + | खु़द का दोस्त बनके खु़द से रूठ गया |
− | लहर इक ‘विनय’ | + | लहर इक ‘विनय’ |
− | टकराया जो पत्थर से टूट गया | + | टकराया जो पत्थर से टूट गया |
− | जब भी निकला आगे | + | जब भी निकला आगे |
− | उसके हाथों से एक हाथ छूट गया< | + | उसके हाथों से एक हाथ छूट गया</poem> |
06:39, 29 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
लेखन वर्ष: २००३
लहर इक ‘विनय’
टकराया जो पत्थर से टूट गया
जब भी निकला आगे
उसके हाथों से एक हाथ छूट गया
जब भी बैठता है
वो यारों के साथ तन्हा बैठता है
उसकी यारी इक ख़ता निकली
पास जिसके भी गया वो रूठ गया
लहर इक ‘विनय’
टकराया जो पत्थर से टूट गया
नाचीज़ खु़द को खा़स समझ बैठा
‘वो’ अजनबी पेश रहा
जब दिल की बात ज़ुबाँ पर लाया
मरासिम टूट गया…
जब भी निकला आगे
उसके हाथों से एक हाथ छूट गया
ग़म क्या थे?
अफ़सोस किस बात का करता वह
जब जी में आया उसके
खु़द का दोस्त बनके खु़द से रूठ गया
लहर इक ‘विनय’
टकराया जो पत्थर से टूट गया
जब भी निकला आगे
उसके हाथों से एक हाथ छूट गया