भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिनचर्या / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा | ||
+ | |संग्रह=माया दर्पण / श्रीकांत वर्मा | ||
+ | }} | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
एक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरे | एक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरे |
16:21, 21 अप्रैल 2008 के समय का अवतरण
एक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरे
काग़ज-सा
चढ़ता हुआ दिन,
तेज़ी से छपते मकान,
घर, मनुष्य
और पूँछ हिला
गली से बाहर आता
कोई कुत्ता ।
एक टाइपराइटर पृथ्वी पर
रोज़-रोज़
छापता है
दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता ।
कहीं पर एक पेड़
अकस्मात छप
करता है सारा दिन
स्याही में
न घुलने का तप
कहीं पर एक स्त्री
अकस्मात उभर
करती है प्रार्थना
हे ईश्वर ! हे ईश्वर !
ढले मत उमर ।
बस के अड्डे पर
एक चाय की दुकान
दिन-भर बुदबुदाती है
‘टूटी हुई बेंच पर
बैठा है
उल्लू का पट्ठा
पहलवान ।’
जलाशय पर अचानक छप जाता है
मछुए का जाल
चरकट के कोठे से
उतरती है धूप
और चढ़ता है
दलाल ।
एक चिड़चिड़ा बूढ़ा थका क्लर्क ऊबकर छपे हुए शहर को
छोड़ चला जाता है ।