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"है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
 
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है  
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रात भर जलना-जलाना उसकी क़िस्मत है तो है  
  
 
दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
 
दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
 
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
 
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
  
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ  
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दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनो-आसमाँ  
 
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
 
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
 
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12:55, 22 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है

सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
ग़ैर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
रात भर जलना-जलाना उसकी क़िस्मत है तो है

दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनो-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है