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हर तरफ़ तू है (नज़्म) / नवनीत शर्मा
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08:01, 15 जनवरी 2009
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मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह
अपनी नाकामी-ए-ख़्वाहिश पे पशेमाँ होकर
फर्ज़
फ़र्ज़
के गाँव में जज़्बात का मकाँ होकर
पर अचानक मुझे तुमने जो पुकारा तो लगा
कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही
द्विजेन्द्र द्विज
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