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"अव्यवस्था / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर
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− | सब कुछ उलट पलट कर भी | + | सब कुछ उलट-पलट कर भी |
कमरे में नहीं मिलती मुझे | कमरे में नहीं मिलती मुझे | ||
गांधी की आत्मकथा | गांधी की आत्मकथा | ||
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उसका अंत | उसका अंत | ||
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मौजूद रहता है मेरा बच्चा | मौजूद रहता है मेरा बच्चा | ||
− | एकटक देखता मेरी | + | एकटक देखता मेरी बौख़लाहट |
और परेशान हो जाता है | और परेशान हो जाता है | ||
सिर पर हाथ रख | सिर पर हाथ रख |
07:38, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
व्यवस्थित नहीं हो पाता मेरा ये कमरा
अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है
कमरे में मेरा होना
मुझे नहीं मिलती वक़्त पर एशट्रे
तीलियाँ जला डालती हैं
उंगलियों के पोर
सब कुछ उलट-पलट कर भी
कमरे में नहीं मिलती मुझे
गांधी की आत्मकथा
देशभक्ति और शास्त्रीय संगीत के कैसेट
जाने कहाँ रख दिए गए हैं
बहुत दिनों से शुरू की
अधूरी कविता नदारद है
जबकि अभी-अभी सूझा है
उसका अंत
मेरे कमरे में हर वक़्त
मौजूद रहता है मेरा बच्चा
एकटक देखता मेरी बौख़लाहट
और परेशान हो जाता है
सिर पर हाथ रख
अक्सर निहारता हूं उसका चेहरा
और अपनी कल्पना के साँचे में
ढालना चाहता हूँ उसे
और बनी रहती है
सारी अव्यवस्था।