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"मातृभाषा / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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लाल आसमान में डैने पसारे हुए | लाल आसमान में डैने पसारे हुए | ||
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ओ मेरी भाषा | ओ मेरी भाषा | ||
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जब चुप रहते-रहते | जब चुप रहते-रहते | ||
अकड़ जाती है मेरी जीभ | अकड़ जाती है मेरी जीभ |
14:21, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा