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|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
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उँगली पर गिनना पड़ता है
किससे बात करें।
बिन पगार वे पनप रहे हम मरखप मर-खप के भी हैं निर्धन
वे कट ग्लासों की क्राकरियाँ हम कुम्हार के हैं बर्तन
मौलिकता है घालमेल की डुप्लीकेटों के युग में
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