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गुलों में गरल / ओमप्रकाश सारस्वत
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04:44, 23 जनवरी 2009
<Poem>
जिनको
दीवारो-दर मिल गए अब
उनसे
तूफां की चर्चा वृथा है
टते थे उनसे
इज्जत की चर्चा से क्या है?
शंख जागरण का जो लिए थे
आज सोते- से जगते नहीं हैं
प्रकाश बादल
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