"कविता / धूमिल" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धूमिल }} <poem> उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे कितने ...) |
छो |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=धूमिल | |रचनाकार=धूमिल | ||
+ | |संग्रह=संसद से सड़क तक / धूमिल | ||
}} | }} | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 22: | ||
लगातार बारिश में भीगते हुए | लगातार बारिश में भीगते हुए | ||
उसने जाना कि हर लड़की | उसने जाना कि हर लड़की | ||
− | तीसरे | + | तीसरे गर्भपात के बाद |
धर्मशाला हो जाती है और कविता | धर्मशाला हो जाती है और कविता | ||
हर तीसरे पाठ के बाद | हर तीसरे पाठ के बाद |
18:47, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे
कितने चेहरे नंगे हो चुके हैं
और हत्या अब लोगों की रुचि नहीं –
आदत बन चुकी है
वह किसी गँवार आदमी की ऊब से
पैदा हुई थी और
एक पढ़े-लिखे आदमी के साथ
शहर में चली गयी
एक सम्पूर्ण स्त्री होने के पहले ही
गर्भाधान कि क्रिया से गुज़रते हुए
उसने जाना कि प्यार
घनी आबादी वाली बस्तियों में
मकान की तलाश है
लगातार बारिश में भीगते हुए
उसने जाना कि हर लड़की
तीसरे गर्भपात के बाद
धर्मशाला हो जाती है और कविता
हर तीसरे पाठ के बाद
नहीं – अब वहाँ अर्थ खोजना व्यर्थ है
पेशेवर भाषा के तस्कर-संकेतों
और बैलमुत्ती इबारतों में
अर्थ खोजना व्यर्थ है
हाँ, अगर हो सके तो बगल के गुज़रते हुए आदमी से कहो –
लो, यह रहा तुम्हारा चेहरा,
यह जुलूस के पीछे गिर पड़ा था
इस वक़्त इतना ही काफ़ी है
वह बहुत पहले की बात है
जब कहीं किसी निर्जन में
आदिम पशुता चीख़ती थी और
सारा नगर चौंक पड़ता था
मगर अब –
अब उसे मालूम है कि कविता
घेराव में
किसी बौखलाए हुए आदमी का
संक्षिप्त एकालाप है