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− | आज आपके लिये | + | आज आपके लिये एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी |
− | एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी | + | <br />आशा है कहानी आपको पसन्द आएगी।<br /> |
− | आशा है कहानी आपको पसन्द | + | [[3k.jpg]] |
− | + | <br />महलो की रानी | |
− | महलो की रानी | + | <br /> |
− | + | <br />एक कहानी बड़ी पुरानी | |
− | एक कहानी बड़ी पुरानी | + | <br />आज सुनो सब मेरी जुबानी |
− | आज सुनो सब मेरी जुबानी | + | <br />विशाल सिन्धु का पानी गहरा |
− | विशाल सिन्धु का पानी गहरा | + | <br />टापू एक वहाँ पर ठहरा |
− | टापू एक वहाँ पर ठहरा | + | <br /> |
− | + | <br />छोटा सा टापू था प्यारा | |
− | छोटा सा टापू था प्यारा | + | <br />कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा |
− | कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा | + | <br />स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर |
− | स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर | + | <br />मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर |
− | मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर | + | <br /> |
− | + | <br />धूप मे अपनी देह गर्माने | |
− | धूप मे अपनी देह गर्माने | + | <br />टापू पे बैठती इसी बहाने |
− | टापू पे बैठती इसी बहाने | + | <br />उसपर इक जादू का महल था |
− | उसपर इक जादू का महल था | + | <br />जिसका किसी को नही पता था |
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− | + | <br />चाँद की चाँदनी मे बाहरआता | |
− | चाँद की चाँदनी मे बाहरआता | + | <br />और सुबह होते छुप जाता |
− | और सुबह होते छुप जाता | + | <br />उसको कोई भी देख न पाता |
− | उसको कोई भी देख न पाता | + | <br />न ही किसी का उससे नाता |
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− | + | <br />एक दिन इक भूली हुई मछली | |
− | एक दिन इक भूली हुई मछली | + | <br />रात को जादू की राह पे चल दी |
− | रात को जादू की राह पे चल दी | + | <br />सोचा रात वही पे बिताए |
− | सोचा रात वही पे बिताए | + | <br />और सुबह होते घर जाये |
− | और सुबह होते घर जाये | + | <br /> |
− | + | <br />देखा उसने अजब नज़ारा | |
− | देखा उसने अजब नज़ारा | + | <br />चमक रहा था टापू सारा |
− | चमक रहा था टापू सारा | + | <br />सुंदर सा इक महल था उस पर |
− | सुंदर सा इक महल था उस पर | + | <br />फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर |
− | फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर | + | <br /> |
− | + | <br />देख के उसको हुई हैरानी | |
− | देख के उसको हुई हैरानी | + | <br />पर मछली थी बडी सयानी |
− | पर मछली थी बडी सयानी | + | <br />जाकर खडी हुई वह बाहर |
− | जाकर खडी हुई वह बाहर | + | <br />पूछा ! बोलो कौन है अन्दर |
− | पूछा ! बोलो कौन है अन्दर | + | <br /> |
− | + | <br />क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो? | |
− | क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो? | + | <br />नज़र किसी को नही आते हो? |
− | नज़र किसी को नही आते हो? | + | <br />अन्दर से आई आवाज़ |
− | अन्दर से आई आवाज़ | + | <br />खोला उसने महल का राज |
− | खोला उसने महल का राज | + | <br /> |
− | + | <br />रानी के बिन सूना ये महल | |
− | रानी के बिन सूना ये महल | + | <br />इसलिए रक्षा करता है जल |
− | इसलिए रक्षा करता है जल | + | <br />ढक लेता इसे दिन के उजाले |
− | ढक लेता इसे दिन के उजाले | + | <br />क्योकि दुनिया के दिल काले |
− | क्योकि दुनिया के दिल काले | + | <br />.................................... |
− | .................................... | + | <br />मछली रानी बडी सयानी |
− | मछली रानी बडी सयानी | + | <br />समझ गई वो सारी कहानी |
− | समझ गई वो सारी कहानी | + | <br />चली गई वो महल के अन्दर |
− | चली गई वो महल के अन्दर | + | <br />अब न रहेगा महल भी खँडहर |
− | अब न रहेगा महल भी खँडहर | + | <br />.......................................... |
− | .......................................... | + | <br />मछली बन गई महल की रानी |
− | मछली बन गई महल की रानी | + | <br />अब न रक्षा करेगा पानी |
− | अब न रक्षा करेगा पानी | + | <br />महल को मिल गई उसकी रानी |
− | महल को मिल गई उसकी रानी | + | <br />खत्म हो गई मेरी कहानी'''<br /> |
− | खत्म हो गई मेरी कहानी | + | *******************************</sup> |
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11:48, 6 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
प्यारे बच्चों,
आज आपके लिये एक काव्य-कथा ले कर आयी हूँ- महलो की रानी
आशा है कहानी आपको पसन्द आएगी।
3k.jpg
महलो की रानी
एक कहानी बड़ी पुरानी
आज सुनो सब मेरी जुबानी
विशाल सिन्धु का पानी गहरा
टापू एक वहाँ पर ठहरा
छोटा सा टापू था प्यारा
कुदरत का अद्बुत सा नज़ारा
स्वर्ग से सुन्दर उस टापू पर
मछलियाँ आ कर बैठती अक्सर
धूप मे अपनी देह गर्माने
टापू पे बैठती इसी बहाने
उसपर इक जादू का महल था
जिसका किसी को नही पता था
चाँद की चाँदनी मे बाहरआता
और सुबह होते छुप जाता
उसको कोई भी देख न पाता
न ही किसी का उससे नाता
एक दिन इक भूली हुई मछली
रात को जादू की राह पे चल दी
सोचा रात वही पे बिताए
और सुबह होते घर जाये
देखा उसने अजब नज़ारा
चमक रहा था टापू सारा
सुंदर सा इक महल था उस पर
फूल सा चाँद भी खिला था जिस पर
देख के उसको हुई हैरानी
पर मछली थी बडी सयानी
जाकर खडी हुई वह बाहर
पूछा ! बोलो कौन है अन्दर
क्यो तुम दिन मे छिप जाते हो?
नज़र किसी को नही आते हो?
अन्दर से आई आवाज़
खोला उसने महल का राज
रानी के बिन सूना ये महल
इसलिए रक्षा करता है जल
ढक लेता इसे दिन के उजाले
क्योकि दुनिया के दिल काले
....................................
मछली रानी बडी सयानी
समझ गई वो सारी कहानी
चली गई वो महल के अन्दर
अब न रहेगा महल भी खँडहर
..........................................
मछली बन गई महल की रानी
अब न रक्षा करेगा पानी
महल को मिल गई उसकी रानी
खत्म हो गई मेरी कहानी