भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इनसे मिलिए / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("इनसे मिलिए / दुष्यंत कुमार" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी)))
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
 
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यन्त कुमार
+
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून
 +
बेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ून
  
पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून<br>
+
कुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पाँव
बेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ून<br>
+
जैसे कोई एटम से उजड़ा गाँव
कुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पांव<br>
+
जैसे कोई एटम से उजड़ा गाँव<br>
+
टखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँस<br>
+
पिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँस<br>
+
कुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़<br>
+
जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़<br>
+
गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण मलीन<br>
+
कटि, रीतिकाल की सुधियों से भी क्षीण<br>
+
छाती के नाम महज़ हड्डी दस-बीस<br>
+
जिस पर गिन चुन कर बाल खड़े इक्कीस<br>
+
पुट्ठे हों जैसे सूख गए अमरूद<br>
+
चुकता करते करते जीवन का सूद<br>
+
बाँहें ढीली ढाली ज्यों टूटी डाल<br>
+
अँगुलियाँ जैसे सूखी हुई पुआल<br>
+
छोटी सी गरदन रंग बेहद बदरंग<br>
+
हरवक़्त पसीने का बदबू का संग<br>
+
पिचकी अमियों से गाल लटे से कान<br>
+
आँखें जैसे तरकश के खुट्टल बान<br>
+
माथे पर चिन्ताओं का एक समूह<br>
+
भौंहों पर बैठी हरदम यम की रूह<br>
+
तिनकों से उड़ते रहने वाले बाल<br>
+
विद्युत परिचालित मखनातीसी चाल<br>
+
बैठे तो फिर घण्टों जाते हैं बीत<br>
+
सोचते प्यार की रीत भविष्य अतीत<br><br>
+
  
कितने अजीब हैं इनके भी व्यापार<br>
+
टखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँस
इनसे मिलिए ये हैं दुष्यन्त कुमार ।<br><br>
+
पिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँस
 +
 
 +
कुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़
 +
जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़
 +
 
 +
गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण मलीन
 +
कटि, रीतिकाल की सुधियों से भी क्षीण
 +
 
 +
छाती के नाम महज़ हड्डी दस-बीस
 +
जिस पर गिन-चुन कर बाल खड़े इक्कीस
 +
 
 +
पुट्ठे हों जैसे सूख गए अमरूद
 +
चुकता करते-करते जीवन का सूद
 +
 
 +
बाँहें ढीली-ढाली ज्यों टूटी डाल
 +
अँगुलियाँ जैसे सूखी हुई पुआल
 +
 
 +
छोटी-सी गरदन रंग बेहद बदरंग
 +
हरवक़्त पसीने का बदबू का संग
 +
 
 +
पिचकी अमियों से गाल लटे से कान
 +
आँखें जैसे तरकश के खुट्टल बान
 +
 
 +
माथे पर चिन्ताओं का एक समूह
 +
भौंहों पर बैठी हरदम यम की रूह
 +
 
 +
तिनकों से उड़ते रहने वाले बाल
 +
विद्युत परिचालित मखनातीसी चाल
 +
 
 +
बैठे तो फिर घण्टों जाते हैं बीत
 +
सोचते प्यार की रीत भविष्य अतीत
 +
 
 +
कितने अजीब हैं इनके भी व्यापार
 +
इनसे मिलिए ये हैं दुष्यन्त कुमार ।
 +
</poem>

12:41, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून
बेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ून

कुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पाँव
जैसे कोई एटम से उजड़ा गाँव

टखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँस
पिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँस

कुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़
जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़

गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण मलीन
कटि, रीतिकाल की सुधियों से भी क्षीण

छाती के नाम महज़ हड्डी दस-बीस
जिस पर गिन-चुन कर बाल खड़े इक्कीस

पुट्ठे हों जैसे सूख गए अमरूद
चुकता करते-करते जीवन का सूद

बाँहें ढीली-ढाली ज्यों टूटी डाल
अँगुलियाँ जैसे सूखी हुई पुआल

छोटी-सी गरदन रंग बेहद बदरंग
हरवक़्त पसीने का बदबू का संग

पिचकी अमियों से गाल लटे से कान
आँखें जैसे तरकश के खुट्टल बान

माथे पर चिन्ताओं का एक समूह
भौंहों पर बैठी हरदम यम की रूह

तिनकों से उड़ते रहने वाले बाल
विद्युत परिचालित मखनातीसी चाल

बैठे तो फिर घण्टों जाते हैं बीत
सोचते प्यार की रीत भविष्य अतीत

कितने अजीब हैं इनके भी व्यापार
इनसे मिलिए ये हैं दुष्यन्त कुमार ।