Changes

उजाला / उदय प्रकाश

3 bytes added, 19:13, 10 नवम्बर 2009
|संग्रह= रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
बचा लो अपनी नौकरी
 
अपनी रोटी, अपनी छत
 
ये कपड़े हैं
 
तेज़ अंधड़ में
 
बन न जाएँ कबूतर
 
दबोच लो इन्हें
 
इस कप को थामो
 
सारी नसों की ताकत भर
 
कि हिलने लगे चाय
 
तुम्हारे भीतर की असुरक्षित आत्मा की तरह
 
बचा सको तो बचा लो
 
बच्चे का दूध और रोटी के लिए आटा
 
और अपना ज़ेब खर्च
 
कुछ क़िताबें
 
हज़ारों अपमानों के सामने
 
दिन भर की तुम्हारी चुप्पी
 
जब रात में चीख़े
 
तो जाओ वापस स्त्री की कोख में
 
फिर बच्चा बन कर
 
दुनारा जन्म न लेने का
 
संकल्प लेते हुए
 
भीतर से टूट कर चूर-चूर
 
सहलाओ बेटे का ग़र्म माथा
 
उसकी आँच में
 
आने वाली कोंपलों की गंध है
 
उसकी नींद में
 
आने वाले दिनों का
 
उजाला है ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits