Last modified on 8 फ़रवरी 2009, at 22:03

"जीना / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
धूर्त कहिए तो बेहतर  
 
धूर्त कहिए तो बेहतर  
 
  
 
आख़िर आप मानते क्यों नहीं  
 
आख़िर आप मानते क्यों नहीं  
 
जीना तो  
 
जीना तो  
 
मुझे भी है यहाँ  
 
मुझे भी है यहाँ  
 
 
 
 
</poem>
 
</poem>

22:03, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण


देखिए ग़लत मत आँकिये मुझे
वास्तव में मैं चालाक हूँ

लोगों के कहे पर मत जाइये
मेरी चालाकी पर भरोसा रखिए

देखिये यक़ीन मानिये

मैं वाक़ई
बहुत चालाक हूँ

धूर्त कहिए तो बेहतर

आख़िर आप मानते क्यों नहीं
जीना तो
मुझे भी है यहाँ