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यादों की राहगुज़र / अविनाश

18 bytes added, 09:39, 8 नवम्बर 2009
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{{KKCatKavita}}<Poem>सब हैं अपना घर भी है मन खाली खाली रहता है
कभी गांव की नदी कभी आमों के बीच ठहरता है
वो परसों ही बोल रही थी भूल गये ना तुम हमको
मेरी चुप्पी मेरा तन्हा वक्त मुझे झुठलाता है</poem>
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