"संगिनी / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
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तुम देखती हो मेरी तरफ़ | तुम देखती हो मेरी तरफ़ | ||
मैं जानता हूँ | मैं जानता हूँ | ||
− | कि तुम्हारी | + | कि तुम्हारी आँखें |
− | पढ़ रही होती | + | पढ़ रही होती हैं |
मेरे उस अंतर्मन को | मेरे उस अंतर्मन को | ||
जो मेरा ही अनदेखा | जो मेरा ही अनदेखा | ||
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पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को | पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को | ||
− | छाई | + | छाई सर्दी की पहली धूप की तरह |
भर देती हो मेरे सूनेपन को | भर देती हो मेरे सूनेपन को | ||
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह | अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह | ||
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एक आकर्षण.... | एक आकर्षण.... | ||
एक माँ ,एक प्रेमिका | एक माँ ,एक प्रेमिका | ||
− | और संग संग जीने की लय | + | और संग-संग जीने की लय |
मैं जानता हूँ कि | मैं जानता हूँ कि | ||
प्रकति का सुंदर खेल | प्रकति का सुंदर खेल | ||
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !! | तेरे हर अक्स में रचा बसा है !! | ||
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20:43, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
यूँ जब अपनी पलकें उठा के
तुम देखती हो मेरी तरफ़
मैं जानता हूँ
कि तुम्हारी आँखें
पढ़ रही होती हैं
मेरे उस अंतर्मन को
जो मेरा ही अनदेखा
मेरा ही अनकहा है
अपनी मुस्कराहट से
जो देती हो मेरे सन्नाटे को
हर पल नया अर्थ
और मन की गहरी वादियों में
चुपके से खिला देती हो
आशा से चमकते
सितारों की रौशनी को
मैं जानता हूँ कि
यह सपना मेरा ही बुना हुआ है
पूर्ण करती हो मेरे अस्तित्व को
छाई सर्दी की पहली धूप की तरह
भर देती हो मेरे सूनेपन को
अपने साये से फैले वट वृक्ष की तरह
सम्हो लेती हो अपने सम्मोहन से
मैं जानता हूँ कि
यही सब मेरे साँस लेने की वजह है
तुम जो हो ....
एक अदा.....
एक आकर्षण....
एक माँ ,एक प्रेमिका
और संग-संग जीने की लय
मैं जानता हूँ कि
प्रकति का सुंदर खेल
तेरे हर अक्स में रचा बसा है !!