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|रचनाकार=वर्तिका नन्दा
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सपने बेचने का मौसम आ गया है।
हाट में सजाए जाएँगे- बेहतर रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई के सपने।
सपनों की हांक हाँक होगी मनभावन
नाचेंगें ट्रकों पर मदमस्त हुए
कुछ फिल्मी सितारे भी
इतनी आसानी से तो नहीं मिल सकता।
'''रचनाकाल : ३ नवंबर २००८</poem>
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