भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरे कैद देश की कविता / रेने देपेस्त्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेने देपेस्त्र }} <poem> उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी अपनी क...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रेने देपेस्त्र | |रचनाकार=रेने देपेस्त्र | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | {{KKAnthologyDeshBkthi}} | |
<poem> | <poem> | ||
उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी | उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 26: | ||
कि मानवता का सुनहरा अनाज उपज सके। | कि मानवता का सुनहरा अनाज उपज सके। | ||
− | + | '''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी | |
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− |
01:36, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
उठो! ओ मेरे अफ़्रीकी
अपनी काली चमड़ी के आहत गुलाब के लिए उठो
उठो ओ मेरे अफ़्रीकी
अपनी रात की रानी की नोंची गई हरेक पंखुड़ी के लिए उठो
उठो दक्षिण अफ़्रीका के हर कीचड़ भरे गड्ढे के लिए
कि वह तूफ़ानी वसंत के बवंडरों से तुम्हारे पद चिह्नों को सोख सके
कि बिखरे खून की चमक मिटाने का साहस कोई न करे
अपनी जनता की भरी-पूरी खुशहाली ओढ़
जा मेरे अफ़्रीका!
विश्व की उम्मीदों पर सवार हो
और तू लौट प्रबुद्ध हो कर
मिलाए गए सभी हाथों से
सभी पढ़ी गई किताबों से
बाँट कर खाई गई रोटियों से
उन सभी औरतों से जिनसे तूने संगति की होगी
उन सभी दिनों से जिन्हें जोता होगा तूने
कि मानवता का सुनहरा अनाज उपज सके।
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी