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"बात छोटी सी है पर हम आज तक समझे नही / सतपाल 'ख़याल'" के अवतरणों में अंतर
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दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं | दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं | ||
− | सुर्ख़ | + | सुर्ख़ रुख़सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल |
− | दौड़कर | + | दौड़कर छत पे चले जाना तेरा भूले नहीं |
− | हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े | + | हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े में थे वो |
मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं | मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं | ||
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आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं | आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं | ||
− | अब के है बारूद की बू चार -सू फैली हुई | + | अब के है बारूद की बू चार-सू फैली हुई |
− | खौफ़ फैला | + | खौफ़ है फैला हुआ आसार कुछ अच्छे नहीं. |
उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल' | उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल' | ||
तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं | तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं |
09:57, 4 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
बात छोटी-सी है पर हम आज तक समझे नहीं
दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं
सुर्ख़ रुख़सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
दौड़कर छत पे चले जाना तेरा भूले नहीं
हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े में थे वो
मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं
हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए
आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं
अब के है बारूद की बू चार-सू फैली हुई
खौफ़ है फैला हुआ आसार कुछ अच्छे नहीं.
उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल'
तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं