भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राजा के अगनवा चन्दन का विरवा /बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }} <Poem> राजा का अ...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
}}
 
}}
 
<Poem>
 
<Poem>
राजा का अगनवा चन्दन का विरव
+
राजा के अँगनवा चन्दन का बिरवा
 
अछर बिछर ओखी डार हो
 
अछर बिछर ओखी डार हो
 +
 
वो ही तरे पूरे बबुआ सोना संकल्पै
 
वो ही तरे पूरे बबुआ सोना संकल्पै
 
डारे लागे सुधर सुनार हो
 
डारे लागे सुधर सुनार हो
 
गढ़ सोनरा तुम आंगन कंगन
 
गढ़ सोनरा तुम आंगन कंगन
गढ़ सुनरा सोलह शृंगार हो
+
गढ़ सुनरा सोलह सिंगार हो
इतना पहिन बेटी चौके में बैठी
+
 
भरीहि मोतियन मांग हो
+
इतना पहिन बेटी चौक में बैठी
 +
भरहि मोतियन मांग हो
 
सोनवा पहिन बेटी मण्डप में आई
 
सोनवा पहिन बेटी मण्डप में आई
आवे लागे मोतियन आसू हो
+
आवे लागे मोतियन आंसू हो
 +
 
 
कि मोरी बेटी अन धन कम है
 
कि मोरी बेटी अन धन कम है
 
कि है रमैया वर छोट हो
 
कि है रमैया वर छोट हो
 
कौन बात बेटी मण्डप में रोई
 
कौन बात बेटी मण्डप में रोई
 
आवे लागे मोतियन आसू हो
 
आवे लागे मोतियन आसू हो
नाही तो मोरे बाबुल धन अन कम है
+
 
 +
नाहीं तो मोरे बाबुल धन अन कम है
 
नहीं है रमैया वर छोट हो
 
नहीं है रमैया वर छोट हो
 
आज की रैन बाबुल तुम्हारा देशवा
 
आज की रैन बाबुल तुम्हारा देशवा

13:42, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राजा के अँगनवा चन्दन का बिरवा
अछर बिछर ओखी डार हो

वो ही तरे पूरे बबुआ सोना संकल्पै
डारे लागे सुधर सुनार हो
गढ़ सोनरा तुम आंगन कंगन
गढ़ सुनरा सोलह सिंगार हो

इतना पहिन बेटी चौक में बैठी
भरहि मोतियन मांग हो
सोनवा पहिन बेटी मण्डप में आई
आवे लागे मोतियन आंसू हो

कि मोरी बेटी अन धन कम है
कि है रमैया वर छोट हो
कौन बात बेटी मण्डप में रोई
आवे लागे मोतियन आसू हो

नाहीं तो मोरे बाबुल धन अन कम है
नहीं है रमैया वर छोट हो
आज की रैन बाबुल तुम्हारा देशवा
कल परदेहिया के देश हो
राजा के अगनवा चन्दन के विरवा...।