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"दिल में किसी के राह / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर

 
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दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं <br>
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दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं  
कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं <br>
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सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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फ़र्द-ए-अमल सियाह किये जा रहा हूँ मैं <br>
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रहमत को बेपनाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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ऐसी भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं <br>
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ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़मत को चार चाँद <br>
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ख़ुद हुस्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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मासूमि-ए-जमाल को भी जिस पे रश्क हो <br>
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ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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आगे क़दम बढ़ायें जिन्हें सूझता नहीं <br>
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रौशन चिराग़-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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तनक़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है <br>
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ये जुर्म गाह-गाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़ <br>
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काँटों से भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर <br>
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जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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मुझ से अदा हुआ है 'जिगर' जुस्तजू का हक़ <br>
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हर ज़र्रे को गवाह किये जा रहा हूँ मैं <br><br>
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हर ज़र्रे को गवाह किये जा रहा हूँ मैं <br>
 
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23:45, 3 मई 2009 के समय का अवतरण


दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं


दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा हूँ मैं


फ़र्द-ए-अमल सियाह किये जा रहा हूँ मैं
रहमत को बेपनाह किये जा रहा हूँ मैं


ऐसी भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं
ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं


मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं


मासूम-ए-जमाल को भी जिस पे रश्क हो
ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं


आगे क़दम बढ़ायें जिन्हें सूझता नहीं
रौशन चिराग़-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं


तनक़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है
ये जुर्म गाह-गाह किये जा रहा हूँ मैं


गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं


यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं


मुझ से अदा हुआ है 'जिगर' जुस्तजू का हक़
हर ज़र्रे को गवाह किये जा रहा हूँ मैं