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"पेट की इस आग को / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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तुम सफ़ीने को ज़रा मँझधार तक लेकर चलो।
 
तुम सफ़ीने को ज़रा मँझधार तक लेकर चलो।
  
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क्यूँ न इस अहसास को आधार तक लेकर चलो।
 
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हाँ, इसी धरती पर छाएँगी अभी हरियालियाँ
 
हाँ, इसी धरती पर छाएँगी अभी हरियालियाँ
 
हौसला बरसात की बौछार तक लेकर चलो।  
 
हौसला बरसात की बौछार तक लेकर चलो।  
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15:44, 3 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

पेट की इस आग को इज़्हार तक लेकर चलो।
इस हक़ीक़त को ज़रा सरकार तक लेकर चलो।

मुफ़लिसी भी, भूख भी, बीमारियाँ भी इसमें हैं,
अब तो इस रूदाद को व्यवहार तक लेकर चलो।

डूबना तो है सफ़ीना, क्यों न ज़ल्दी हो ये काम
तुम सफ़ीने को ज़रा मँझधार तक लेकर चलो।

बँट गए क्यों दिल हमारे, तज़्किरा बेकार है
क्यूँ न इस अहसास को आधार तक लेकर चलो।

हाँ, इसी धरती पर छाएँगी अभी हरियालियाँ
हौसला बरसात की बौछार तक लेकर चलो।